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नियुक्त कोश
- १६८५. सुयग्गाहि ( श्रुतग्राहिन् ) सुतं गाहयतीति सुयग्गाही ।
१६८६. सुयनिधस ( श्रुतनिघर्ष )
( दजिचू पृ ३१४ )
जो श्रुत / आगम ज्ञान को ग्रहण करता है, वह श्रुतग्राही है ।
श्रतं निघर्षयन्तीति श्रुतनिघर्षाः ।'
-१६८७. सुर (सुर)
जो श्रुत का निघर्षण करते हैं, वे श्रुतनिघर्षक हैं ।
सुष्ठु राजन्ते ये ते सुराः ।
वे
जो सम्यक् प्रकार से सुशोभित होते हैं, सुरन्ति - विशिष्टमेश्वर्यमनुभवन्तीति सुराः । '
देव हैं ।
जो विशिष्ट ऐश्वर्य का अनुभव करते हैं, वे सुर / देव हैं । सुष्ठु रान्ति - ददति प्रणतानामीप्सितमर्थं इति सुराः ।
( नक १ टी पृ ३८, ३६ )
१६८८ सुरइ (सुरति )
( व्यभा ४ / २ टी प २८ )
जो पूजा से प्रसन्न हो इच्छित वस्तु प्रदान करते हैं, वे सुर /
ध्वनि है ।
१६८६. सुरक्खित ( सुरक्षित )
शोभना रतिर्यस्मिन्नु श्रोतॄणां तत् सुरतिः । (राटी पृ १३३ ) रति / प्रेम है, वह सुरति / मधुर
जिसमें श्रोताओं की अच्छी
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( उपाटी पृ १२४ )
सुर / देव हैं ।
सुट्टु सव्वपयत्तणेण पावविणियत्तीए रक्खितो सुरक्खितो ।
स्वसमयपरसमयान् परीक्ष्यन्ते ते श्रुतनिघर्षाः ।
( अचू पृ २७० )
जो सव प्रकार के पापों से रक्षित है, वह सुरक्षित है ।
२. सुरत् ऐश्वर्य दीप्त्योः सुरन्तीति सुराः । (अचि पृ १७ )
( व्यभा ४ / २ टी प २८ )
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