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निरुक्त कोश
३१७ १६७३. सुद्द (शूद्र) शोचनाद् रोदनाच्च शूद्राः ।'
(आटी प ७) जो शोक करते हैं, रोते हैं, वे शूद्र हैं । १६७४. सुपट्ठिय (सुप्रस्थित) सुष्टु प्रस्थितः सुप्रस्थितः।
(उशाटी प ४७७) जिसने अच्छे ढंग से प्रस्थान किया है, वह सुप्रस्थित है। १६७५. सुपडिबुद्ध (सुप्रतिबुद्ध) सुट्ठ पडिबुद्धं सुपडिबुद्धं ।
(आचू पृ १७०) जो सम्यक् प्रकार से प्रतिबुद्ध है, वह सुप्रतिबुद्ध है। १६७६. सुप्पडियार (सुप्रतिकार) सुखेन प्रतिक्रियते-प्रत्युपक्रियत इति सुप्रतिकारम् ।
(स्थाटी प ११३) जिसका प्रतिकार सुखपूर्वक किया जाता है, वह सुप्रतिकार
१६७७. सुप्पणिहाणा (सुप्रणिधान)
सुष्ट-प्रकण नियते आलम्बने धानं-धरणं मनः प्रभृतेरिति सुप्रणिधानम् ।
(नंटि पृ १०१) निश्चित आलम्बन पर मन आदि को प्रकृष्ट रूप में स्थापित
करना सुप्रणिधान है। १६७८. सुप्पणिहिय (सुप्रणिहित)
सुष्टु प्रणिहितानि ----असन्मार्गात् प्रच्याव्य सन्मार्गे व्यवस्थापितानीन्द्रियाण्यनेनेति सुप्रणिहितः।
(उशाटी प ५८१) जिसने इन्द्रियों को अच्छी तरह प्रणिहित/व्यवस्थापित किया है, वह सुप्रणिहित स्थिरयोगी है । १. शीयते इति शूद्रः। (अचि पृ १९७) जिसे उत्पीड़ित किया जाता है, वह शूद्र है। (शदल--शातने)
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