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१७०२. सुहसायय ( सुखस्वादक )
सुहं सायति - पत्थयतित्ति सुहसाययो ।
१७०३. सुहसील ( सुखशील )
सुहं सोलेति- अणुट्ठेति सुहसीले । जो सुविधावादी है, वह सुखशील है ।
जो सुख की प्रार्थना करता है, वह सुखस्वादक है ।
१७०४. सुहावह ( सुखावह )
सूयणीया सुहुमा ।
सुहमावहतीति सुहावहं ।
( दजिचू पृ ३२९ ) जो सुख का आवहन करता है, वह सुखावह / सुखकर है । १७०५. सुहुम (सूक्ष्म)
१७०६. सुहय ( सुहूत)
निरुक्त कोश
( दजिचू पृ १६३ )
( आचू पृ २६५ ) जिनका प्रयत्नपूर्वक सूचन किया जाता है, वे सूक्ष्म हैं ।
सुष्ठु हुतं क्षिप्तं घृतादीनि गम्यते यस्मिन् स सुहूतः ।
१७०७. सूर ( शूर)
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( दअचू पृ ६ )
( स्थाटी प ४४४ )
जिसमें अच्छी तरह से घृत आदि डाले गये हों, वह सुहूत (अग्नि) है ।
१. सूच्यते सूक्ष्मम् । (अचि पृ ३१९ )
२. (क) शवति वीयं प्राप्नोतीति शूरः । (ख) 'शूर' का अन्य निरुक्त
शूरयति विक्रामति इति शूरः । ( शब्द ५ पृ १२६ ) जो वीरता दिखाता है, वह शूर है ।
शपति शप्यते वा शूरः ।
( सूचू १ टी पृ ७६ )
जो आह्वान करते हुए आगे बढ़ता है, वह शूर / योद्धा है । शवत्यसौ युद्धं मुंचति वा तमिति शूरः パ ( उच्च् पृ ५६ ) जो युद्ध में शक्ति को प्राप्त होता है, वह शूर है ।
जो युद्ध में शक्ति का प्रयोग करता है, वह शूर है ।
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