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निरुक्त कोश
५१७. गेहि (गृद्धि) गृयतेऽनेनेति गृद्धिः।
(उचू पृ १५१) जिससे प्राणी आसक्त होता है, वह गृद्धि है । ५१८. गो (गो) णिसिरिया लोगंतं गच्छतीति गो। (दअचू पृ १५६)
बोली जाने पर जो लोकान्त तक जाती है, वह गो/वाणी
५१६. गोत्त (गोत्र) गूयते इति गोत्रम् ।
(उचू पृ १०२) __ जो प्राणियों की शुभता-अशुभता प्रकट करता है, वह गोत्र
गीयते-शब्द्यते उच्चावचैः शब्दैः आत्मेति गोत्रम् ।
(उशाटी प ६४१) जिसके द्वारा प्राणी उच्चावचरूप में पुकारा जाता है, वह गोत्र है। गां वाचं त्रायतीति गोत्रम् ।
(प्राक १ टी प ५) जो गो/वाणी की रक्षा करता है, वह गोत्र है। ५२०. गोपुर (गोपुर) गोभिः पूर्यत इति गोपुरम् ।
(उचू पृ १८२) जो नगर-द्वार गो/प्रभा से परिपूर्ण होता है, वह गोपुर है ।
जो नगर-द्वार अपनी कलात्मकता के कारण गो/जननेत्रों से परिपूर्ण होता है, वह गोपुर है। १. गूयते शुभाशुभता प्राणिनां यद्वशात्तद्वा गोत्रम् । (पंसंमटी प १०७)
गूङ---शब्दे । २. 'गोपुर' के अन्य निरुक्त-- १. गोप्यते गोपुरम् । (अचि पृ २१७)
जो नगर की रक्षा करता है, वह गोपुर/नगर-द्वार है । २. गोपायति नगरं रक्षतीति गोपुरम् । (शब्द २ पृ ३५६)
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