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निरुक्त कोश
१३००. लूह (रूक्ष)
अंतपतेहि लूहेहि जीवंतीति लूहे। (दअचू पृ २३४)
जो अंतप्रांत भोजन से जीवन यापन करता है, वह रूक्ष/
संयमी है। १३०१. लूहवित्ति (रूक्षवृत्ति)
लूहं-संजमो तस्स अणुवरोहेण वित्ती जस्स सो लूहवित्ती।
__ जो रूक्ष/संयम के द्वारा जीवन यापन करता है, वह रूक्षवृत्ति है। लूहदव्वाणि-चणगनिष्फावकोद्दवादीणि वित्ती जस्स सो लूहवित्ती।
(दश्रुचू प १९१) जो रूक्ष भोजन से जीवन यापन करता है, वह रूक्षवृत्ति/
संयमी है। १३०२. लेसा (लेश्या) लेशयति-श्लेषयतीवात्मनि जननयनानीति लेश्या ।
(उशाटी प ६५०) जो दूसरों की आंखों को अपनी ओर आकृष्ट करती है, वह
लेश्या/दीप्ति है। १३०३. लेसा (लेश्या) श्लेषयन्त्यात्मानमष्ट विधेन कर्मणा इति लेश्याः ।
(आवहाटी १ पृ १३) जो आत्मा को अष्टविध कर्म से श्लिष्ट करती है, वह
लेश्या/आत्मपरिणाम विशेष है। १३०४. लोगेसणा (लोकैषणा) जं लोगो एसति सा लोगेसणा।
(आचू पृ १३५) जिसकी लोग खोज/प्रार्थना करते हैं, वह लोकैषणा है । १. (क) कायाद्यन्यतमयोगवतः कृष्णादिद्रव्यसंबन्धादात्मनः परिणामाः
लेश्याः । (आवहाटी १ पृ १३) (ख) कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात्परिणामो य आत्मनः।
स्फटिकस्येव तत्रायं, लेश्याशब्दः प्रयुज्यते ॥ (उशाटी प ६५६)
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