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निरक्त कोश
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१४४८. विहारि (विहारिन्) ज्ञानादीनां पार्वे तटे विहरतीत्येवंशीलो विहारी।
(व्यभा ३ टी प १११) जो (ज्ञान आदि के तट पर) विहरण करता है, वह
विहारी है। १४४६. वीइ (वीचि)
वेचनात् विविक्तस्वभावत्वाद्वीचिः। (भटी पृ १४३१)
जो वस्तुओं के अनुरूप पृथक् पृथक् आकार धारण करता
है, वह वीचि आकाश है। १४५०. वीदंसय (विदंशक)
विशेषेण दशन्तीति विदंशकाः। (उशाटी प ४६०)
जो विशेष रूप से काटते हैं, वे विदंशक हैं । १४५१. वीमंसा (विमर्श, मोमांसा)
संकप्पते चेव विविधा आमरिसणा वोमंसा। (नंचू पृ ४६)
___ संकल्पपूर्वक विविध प्रकार से आमर्श चिन्तन करना
विमर्श/ईहा/मतिज्ञान का एक भेद है । १४५२. वीयराग (वीतराग) वीतो-विगतो रागो यस्मात् स चासौ वीतरागः ।
(स्थाटी प ४६) जो राग से वीत/रहित है, वह वीतराग है। १४५३. वीर (वीर) ........ "विक्कतो व कसायाइसत्तुसेनापराजयओ।
(विभा १०५६) वीरयति कषायान् प्रति विक्रामति स्मेति वीरः। (जंटी प १५)
कषायों का नाश करने में जो वीरता/पराक्रम दिखाता है, वह वीर है।
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