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निरक्त कोश
ईरइ विसेसेणं खिवेइ कम्माइं गमयइ सिवं वा । गच्छद य तेण वीरो स... .........'
__ (विभा १०६०) जो विशेष रूप से कर्मों का क्षय कर, मोक्ष की ओर गमन करता है, वह वीर है। विरायति संजमवीरिएणं वीरो।
(आचू पृ ७५) जो संयम के वीर्य से सुशोभित है, वह वीर है । विशिष्टा-सकलभुवनाद्भुता यका स्वर्गापवर्गादिका ई:लक्ष्मीस्तां राति भव्येभ्यः प्रयच्छति इति वीरः।
___ (नक २ टी पृ ६६) जो वि/विशिष्ट, ई/(मुक्तीरूपी) लक्ष्मी (भव्यजनों को)
रा/प्रदान करता है, वह वीर है। १४५४. वोरिय (वीर्य) विराजयत्यनेनैव इति वीरियं ।
(उचू पृ ६६) जिससे जीव दीप्त होता है, वह वीर्य है ।। विशेषेण ईय॑ते-चेष्ट्यतेऽनेनेति वीर्यः। (उशाटी प ६४५)
जो प्राणी को विशेष रूप से प्रवृत्त करता है, वह वीर्य है । १४५५. वीसायणिज्ज (विस्वादनीय) विशेषतः स्वादनीयो विस्वादनीयः। (प्रज्ञाटी प ३६६)
जो विशिष्ट स्वादिष्ट है, वह विस्वादनीय है। १४५६. वीसास (विश्वास)
विश्वासयतीति विश्वासः। (व्यभा ४/२ टी प ६७)
जो विश्वस्त करता है, वह विश्वास है। १. विशेषेण-अपुनर्भावेन ईर्ते-'ईरिक् गतिकम्पनयोः' इति वचनाद् याति शिवं, कम्पयति--आस्फोटयति अपनयति कर्म वेति वीरः।
(नक २ टी पृ ६६) २. वीर्य्यतेऽनेनेति वीर्यः । (शब्द ४ पृ ४७४)
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