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निरक्त कोश
१५३८. संसार (संसार)
संसरणम् ---इतश्चेतश्च परिभ्रमणं संसारः। (स्थाटी प १६१)
जिसमें प्राणी भ्रमण करता है, वह संसार है । १५३६. संसुद्ध (संशुद्ध) समस्तं सुद्धं संसुद्धं ।
(आवचू २ पृ. २४२) जो संपूर्ण रूप से शुद्ध है, वह संशुद्ध है। १५४०. संसेइम (संस्वेदिम) सम्—एकोभावेन स्वेदः संस्वेदः तेन निवृत्तं संस्वेदिमम् ।
(बृटी पृ २७०) जो स्वेद/सघन वाष्प से निष्पन्न होते हैं, वे संस्वेदिम हैं । १५४१ . सक्क (शक) शक्नोतीति शक्रः ।
(उचू पृ १८१) जो (दैत्यों का नाश करने में) समर्थ है, वह शक्र/इंद्र है । शक्तिबोगाच्छकः ।
(उपाटी पृ १२४) ___ जो शक्ति-संपन्न है, वह शक है । १५४२. सच्च (सत्य) सद्भयो हितं सच्चं ।
(आवचू २ पृ २४२) जो सत्/श्रेय के लिए हितकर है, वह सत्य है । १५४३. सज्ज (षड्ज) षड्भ्यो जातः षड्जः।
(अनुद्वामटी प ११७) ___ जो षट् छह स्थानों से उत्पन्न होता है, वह षड्ज (स्वर)
१. शक्नोति दैत्यान् नाशयितुमिति शक्रः । (शब्द ५ पृ७) २. 'शक' का अन्य निरुक्त
शक्रं नाम सिंहासनमस्यास्तीति शक्रः। (अचि १४०) ___ जो शक्र नाम के सिंहासन से सुशोभित होता है, वह शक है । ३. 'षड्जः षड्भ्यस्तु जायते। कण्ठोरस्तालुनासाभ्यो जिह्वाया दशनादपि ॥ (अचि पृ ३१४)
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