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१६२१. सागरंगमा ( सागरङ्गमा )
सागरं - समुद्रं गच्छतीति सागरङ्गमा ।
१६२२. सागार (सागार)
( उशाटी प ३५२ )
जो सागर की ओर जाती है, वह सागरङ्गमा / नदी है ।
सहागारेण - गृहेण वर्तते इति सागारः ।
१६२३. सामण ( सामान्य )
जो अगार / गृह में रहता है, वह सागार / गृहस्थ है ।
१६२४. सामाइय (सामाजिक)
उपसर्जनीकृतातुल्यरूपाः प्रधानीकृततुल्यरूपाः समतया प्रज्ञायमानाः सामान्यमिति व्यपदिश्यन्ते । ( स्थाटी प १२ )
जिसमें असमानता गौण रूप से और समानता प्रधान रूप से जानी जाती है, वह सामान्य है ।
१६२५. सामुच्छेइय ( सामुच्छेदिक )
निरुक्त कोश
समाज:- -समूहस्तं समवयन्ति सामाजिका: । ( उशाटी प ३५१ ) जो समूह में चलते हैं, वे सामाजिक हैं ।
( पंटी प १५३ )
प्रतिक्षणं समुच्छेदं --- क्षयं वदन्तीति सामुच्छेविका: ।
१६२६. सायणी (शायिनी )
जो प्रतिक्षण समुच्छेद / विनाश का प्रतिपादन करते हैं, वे सामुच्छेदिक / अश्वमित्र ( निह्नव) मतानुयायी हैं ।
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( औटी पृ २०२ )
शाययति -- स्वापयति निद्रावन्तं करोति या शेते वा यस्यां सा शायिनी शयनी वा ।' ( स्थाटी प ४६७)
जो व्यक्ति को सुलाती है, वह शायिनी / मनुष्य की दसमी दशा है ।
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१. ही भिन्न सरो दोणो, विवरीओ विश्चित्तओ ।
डुब्बलो दुखिओ सुवई, संपत्तो इसम दसं । ( स्थाटी प ४६७)
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