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१६३१. सावेक्ख ( सापेक्ष )
सह अपेक्षा गच्छस्येति गम्यते येषां ते सापेक्षाः ।
मुनि हैं । १६३२. सालि (शालि )
शालितीति शालिः । '
जिनके गच्छ / गण की अपेक्षा है, वे सापेक्ष / गच्छवासी
१६३३. सासण ( शासन )
जो श्लाघ्य / प्रशस्य है, वह शालि / धान्य है |
सासिज्जति - णाये पडिवायिज्जति जेण तं सासणं ।
शासन है ।
शास्तीति शासनम् ।
शासनात् शिक्षणाच्छासनम् ।
( अचू प २६० ) जिसके द्वारा न्याय का प्रतिपादन किया जाता है, वह
१६३४. सासय ( शाश्वत )
( व्यभा १ टी प ५२)
शश्वद्भवतीति शाश्वतः ।
जो अनुशासित करता है, वह शासन है ।
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१६३५. सासु ( सासु)
जो निरन्तर होता है, वह शाश्वत है ।
१. 'शालि' का अन्य निरुक्तशृणातीति शालिः ।
निरुक्त कोश
असवः प्राणाः सह असवा यस्य येन वा तत् सासुः ।
( उबू पृ २१० )
(उच्च् पृ २३२ )
( अनुद्वामटी प ३४ )
( सू २ पृ ३३९ )
अ/प्राणों सहित है, वह सासु / सचित्त है ।
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( व्यभा ६ टीप ६६ )
शालयो मधुराः शीता लघुपाका बलावहाः । पित्तनाश्चानिलकफाः स्निग्धा बद्धाल्पवचसः ॥ ( शब्द ५ पृ ६४ )
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