________________
'निरक्त कोश
३१३ १६५४. सिसु (शिशु) शंसति' व तेनेति शिशुः।
(उचू पृ १३४) जो सोता है, वह शिशु है । १६५५. सीमंकर (सीमङ्कर)
सोमां-मर्यादां करोतीति सीमङ्करः। (राटी पृ २४)
जो अपने अधीनस्थ व्यक्तियों के लिए सीमा/मर्यादा करता
है, वह सीमंकर है। १६५६. सीमंधर (सीमन्धर) सीमां-मर्यादां धारयति पालयति न तु विलुम्पतीति सीमन्धरः।
(राटी पृ २४) जो प्राचीन और अर्वाचीन सीमाओं परंपराओं का धारण
निर्वहन करता है, वह सीमंधर है । १६५७. सीय (शीत) शृणाति इति शोतम् ।
(उशाटी प ८८) जो क्षत-विक्षत करता है, वह शीत (ऋतु) है। शशति शीघ्र गच्छति दिनमत्र शिशिरः । (अचि पृ ३५) जिसमें दिन शीघ्रता से बीतता है, वह शिशिर (ऋतु) है। शशति गच्छति वृक्षादिशोभा यस्मात् शिशिरः । (शब्द ५ प १०७)
वृक्ष आदि जिससे शोभाहीन हो जाते हैं, वह शिशिर है । १. शस्-to sleep (आप्टे पृ १५४०) २. 'शिशु' का अन्य निरुक्त-- श्यति क्रशयति मातरं शिशुः। (अचि पृ ७६) जो माता का दुग्धपान करता है, वह शिशु है । शिशुः शंसनायो भवति, शिशीते । (नि १०/३६) जो शसंनीय/प्रशंसा के योग्य है, वह शिशु है । मनुष्य द्वारा जो स्त्री को दिया जाता है, वह शिशु है । (शि-दाने) ३. 'शीत' के अन्य निरुक्तशेतेऽनेन श्यायते वा शीतः। (अचि पृ ३१०) जो सघन करता है, वह शीत है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org