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१५८३. समुदाण ( समुदान)
समिति--सम्यक् प्रकृतिबन्धादिभेदेन देशसर्वोपघातिरूपतया च आदानं स्वीकरणं समुदानम् । ( स्थाटी प १४७ )
सम्यक् आदान / स्वीकरण समुदान ( क्रियाविशेष ) है ।
१५८४. समुदाण ( समुदान)
समेच्च उवादीयते समुदाणं ।
( अचू पृ २२० ) जो सामूहिक रूप से ग्रहण किया जाता है, वह समुदान ( भिक्षा) है ।
१५८५. समुह (समुद्र)
समन्तादुन त उन्नावा पृथिवों कुर्वत अनेनेति समुद्रः ।
है |
सह मुद्रा - मर्यादया वर्तन्त इति समुद्राः ।
( उचू पृ १७२ )
जो चारों ओर से पृथिवी को आर्द्र कर देता है, वह समुद्र
निरुक्त कोश
जो मुद्रा / मर्यादा में रहते हैं, वे समुद्र हैं ।
१. 'समुद्र' के अन्य निरुक्त
समुन्दन्ति आर्द्राभवन्ति वर्षाकालनद्योऽस्मात् समुद्रः । (अचि पृ २३८ ) बरसाती नदियां जिससे आर्द्र होती हैं, भरती हैं, वह समुद्र है ।
सम्यगुद्गतो रोऽग्निरत्र समुद्रः ।
जिससे र- अग्नि पैदा होती है, वह समुद्र है ।
चन्द्रोदयात् आपः सम्यगुन्दन्ति क्लिद्यन्ति अत्र समुद्रः ।
चन्द्रमा की कलाओं के साथ-साथ जिसका जल बढ़ता है, वह समुद्र
है ।
मुदं राति ददाति समुद्रः ।
जो मुद् / प्रसन्नता प्रदान करता है, वह समुद्र है ।
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( अनुद्वामटी प ८२ )
मुद्राणि रत्नादीनि तैः सह वर्त्तते इति समुद्रः । ( शब्द ५ पू२७८ ) मुद्र / रत्नों से युक्त है, वह समुद्र है ।
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