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१५२. सयक्कतु ( शतक्रतु)
कतू पडिमा तास सतं फासितं जेण सो सयक्कतू ।
(दश्रुचू प ६४ )
जिसने सौ बार ऋतु / प्रतिमा का स्पर्श / पालन किया है, वह शतक्रतु / इन्द्र है ।
- १५६३. सयग्घी ( शतघ्नी )
शतं घ्नन्तीति शतघ्न्यः ।
( उच् पृ १८२ ) जो सौ व्यक्तियों को एक साथ मारती है, वह शतघ्नी / शस्त्रविशेष है ।
१५४. सयण ( शयन )
सुप्पति जत्थ णं सयणं ।
जहां सोया जाता है, वह शयन है ।
१५६५. सयण ( शयन )
शय्यते - स्थीयते येष्विति शयनानि । जिन पर बैठा जाता है, वे शयन हैं ।
१५६६. सर (स्वर)
निरुक्त कोश
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( आचू पृ ३१२)
अक्षस्य चैतन्यस्य स्वरणात् संशब्दनात् स्वराः ।
( विभामहेटी १ पृ २१६) जीव / चैतन्य का जो शब्द है, वाणी है, वह स्वर है । १५६७. सरक्खर (स्वराक्षर )
अक्खरं अक्खरं सरंति-गच्छंति सरंति' वा इत्यतो सरक्खरं । ( नंचू पृ ५४ ) जो प्रत्येक अक्षर के साथ सरण / संयुक्त होते हैं, वे स्वर हैं । जो उच्चारण में सहयोगी बनते हैं, वे स्वर हैं ।
१. ( क ) कार्तिकश्रेष्ठत्वे शतक्रतुः ( उपाटी पृ १२४) (ख) 'शतऋतु' का अन्य निरुक्त
शतं ऋतवोsस्य शतक्रतुः । ( वा पृ ५०८१ )
जिसने सौ बार ऋतु/यज्ञ किया है, वह शतक्रतु / इन्द्र है । २. स्वर्, स्वृ— to sound ( आप्टे पृ १७४४)
( आटी प ३०७ )
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शतं ऋतूनाम् — अभिग्रह विशेषाणां यस्यासौ
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