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निरक्त कोश १६०९. सव्वट्ठसिद्ध (सर्वार्थसिद्ध) सर्वेऽर्थाः सिद्धा इव सिद्धा येषां ते सर्वार्थसिद्धाः ।
___ (उशाटी प ७०३) जिनके सब अर्थ सिद्ध हो गए हैं, वे सर्वार्थसिद्ध (देव) हैं। १६१०. सव्वदंसि (सर्वदशिन्)
सर्व समस्तं गम्यमानत्वात्प्राणिगणं पश्यति-आत्मवत् प्रेक्षत इत्येवंशीलः, अभिभूय रागद्वेषौ सर्व वस्तु समतया पश्यतीत्येवंशील: सर्वदर्शी।
(उशाटी प ४१४) जो सब कुछ देखता है, वह सर्वदर्शी है ।
जो सबको समत्व से देखता है, वह सर्वदर्शी है। १६११ सव्वधत्ता (सर्वधत्ता)
सर्व जीवाजीवाख्यं वस्तु धत्तं-निहितमस्यां विवक्षायामिति सर्वधत्ता।
जिसमें जीव-अजीव समस्त पदार्थ विवक्षित हैं, वह सर्वधत्ता विवक्षा है। सर्व बधातीति सर्वधं-निरवशेषवचनं सर्वधमात्तं-आगृहीतं यस्यां विवक्षायां सा सर्वधत्ता। (आवहाटी १ पृ ३१८)
जो समस्त को ग्रहण करती है, वह सर्वधत्ता विवक्षा है। १६१२ सव्वासि (सर्वाशिन्)
सर्वमश्नातीत्येवंशीलः सर्वाशी। (व्यभा ३ टी प १०६)
जो अधिक खाता है, वह सर्वाशी/बहुभोजी है। १६१३ ससी (सश्री)
सह श्रिया वर्तत इति सश्रीः। (भटी पृ १०६१)
जो श्री/शोभा से युक्त है, वह सश्री/चन्द्रमा है।
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