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निरुक्त कोश १५७१. समवसरण (समवसरण) समवसरंति जेसु दरिसणाणि दिट्ठीओ वा ताणि समोसरणाणि ।
(सूचू १ पृ २०७) जहां अनेक दर्शन/दृष्टियां समवसृत होती हैं, वह समवसरण
२५७२. समवाय (समवाय)
जीवा समासिज्जंति समं आसइज्जति । समं ति–ण विसमं, जहावत्थितं अनुनातिरित्तं इत्यर्थः। आसइज्जति-आश्रीयंते बुद्ध्या ज्ञानेन गृह्यतेत्यर्थः ।
(नंचू पृ ६४) जिसमें ज्ञान या बुद्धि के द्वारा जीव आदि पदार्थों का
यथार्थ आकलन किया गया है, वह समवाय (सूत्र) है। १५७३. समादाण (समादान)
समादीयते कर्म एभिरिति समादानानि । (जीटी प १२१)
जिनके द्वारा कर्मों का आदान/ग्रहण किया जाता है, वे
समादान कर्म-हेतु हैं। १५७४. समास (समास) भिण्णपयसमसणं समासो।
(दअचू पृ ७) जो भिन्न पदों को समस्त/संयुक्त करता है, वह समास है। १५७५. समाहिमण (समाधिकमनस्) समेन वा उपशमेन अधिकं मनो यस्य समाधिकमनाः ।
(प्रटी प १११) जिसका मन सम/उपशम में अधिक आकृष्ट है, वह समाधिक
मना/समाहितमना है। १५७६. समाहिमण (समाहितमनस्)
सम-तुल्यं रागद्वेषानाकलितं आहितं- उपनीतमात्मनि मनो येन स समाहितमनाः।
जिसका मन समत्व में लीन है, वह समाहितमना है।
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