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निरुक्त कोश १५२७. संलेहणा (संलेखना) संलिख्यतेऽनया शरीरकषायादीनि संलेखना।'
(आवहाटी २ पृ २३३) संलिख्यते-कृशीक्रियतेऽनयेति संलेखना। (भटी प १२७)
शरीर और कषाय जिसके द्वारा कुरेदे जाते हैं, कृश किये
जाते हैं, वह संलेखना है। १५२८. संवच्छर (संवत्सर)
संवसन्ति तस्मिन्निति संवत्सरः। (सूचू २ पृ ४४४)
(समस्त ऋतुएं) जिसमें सम्यक रूप से अवस्थान वर्तन
करती हैं, वह संवत्सर है। १५२६. संवट्ट (संवर्त) संवर्तन्ते-पिण्डीभवन्त्यस्मिन् भयत्रस्ता जना इति संवतः।
(उशाटी प ६०५) जहां भयभीत लोग एकत्र होते हैं, वह संवर्त है । १५३०. संवट्टग (संवर्तक)
संवर्तयति-नाशयतीति संवर्तकः। (नंटि पृ १०३)
जो भरतक्षेत्र की पृथ्वी के संपूर्ण दोषों का अपने प्रशस्त जल
से संवर्तन/नाश करता है, वह संवर्तक (मेघ) है । १५३१. संवर (संवर)
संवियते-कर्मकारणं प्राणातिपातादि निरुध्यते येन परिणामेन स संवरः।
(स्थाटी प १७) संवियते-निरुध्यते आत्मतडागे कर्मजलं प्रविशदेभिरिति संवराः ।
(प्रटी प २) जो कर्म-प्रवेश का संवरण/निरोध करते हैं, वे संवर/व्रत, अप्रमाद आदि हैं। १. अनशन से पूर्व की जाने वाली तपस्या । २. संवसन्ति ऋतवोऽत्र संवत्सरः। (वा पृ ५१७६)
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