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निरुक्त कोश
२५५. १५१२. संपत्त (सम्प्राप्त) ___ सोभणेण पगारेण पत्ते संपत्ते ।
(दजिचू पृ १६६) जो अच्छे ढंग से प्राप्त है, वह सम्प्राप्त है । १५१३. संपराय (सम्पराय) संपरीत्यस्मिन्निति सम्परायः।
(सूचू १ पृ १४०) संपरायन्ति-भृशं पर्यटन्त्यस्मिन् जन्तव इति सम्परायः ।
(उशाटी प ४७८) जिसमें प्राणी पर्यटन-भ्रमण करते हैं, वह संपराय/संसार
१५१४. संपराय (सम्पराय) संपर्येति–पर्यटति अनेन संसारमिति संपरायः ।
(उशाटी प ५६८) जिससे संसार-भ्रमण करना पड़ता है, वह संपराय
लोभकषाय है। १५१५. संपातिम (सम्पातिम) आहच्च आगत्य सव्वतो पतंति संपतंति-इति संपातिमा।
__ (आचू पृ ३१) सहसा सब ओर से आकर जो प्राणी गिरते हैं, वे सम्पातिम हैं। सम्पतितुमुत्प्लुत्योत्प्लुत्य गन्तुमागन्तुं वा शीलं येषां ते सम्पातिमाः।
(आटी प ५५) जो फुदक-फुदक कर आगे जाते हैं, वे सम्पातिम हैं । १५१६. संबद्ध (सम्बद्ध) समस्तं बद्धाः संबद्धाः।
(सूचू १ पृ.६०) जो सम्पूर्णरूप से बद्ध है, वह संबद्ध है।
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