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निरुक्त कोश
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समं ग्रस्ते इति संग्रामः।
(उचू पृ ५६) - जो एक साथ (बहुतों को) कालकवलित करता है, वह
संग्राम है। १४८६. संघ (सङ्घ) संघातयतीति संघः।
(व्यभा ४/२ टी प ६७) जो सबको संहत/सम्मिलित करता है, वह संघ है । १४६०. संघयण (संहनन)
संहन्यन्ते-धातूनामनेकार्थत्वाद् दृढी क्रियन्ते शरीरपुद्गलाः कपाटादयो लोहपट्टिकादिनेव येन तत् संहननम् । (नक १ टी पृ ४०)
जिसके द्वारा शरीर के पुद्गल दृढ़ होते हैं, वह संहनन
अस्थि-रचना विशेष है। १४६१. संघाडी (सङ्घाटी)
संघातिज्जति त्ति संघाडी। गुणसंघायकारणी वा संघाडी। (निचू ३ पृ ३२६)
__ जो गुण/तन्तु के संघात समूह से निर्मित है, वह संघाटी/
शाटिका है। "१४६२. संघात (सङ्घात)
संघातयति-पिण्डीकरोति औदारिकपुद्गलान् येन हेतुना संघातमुच्यते।
(प्राक १ टी पृ ४५) जिस कारण से औदारिक आदि पुद्गल संहत पिण्डीभूत
होते हैं, वह संघात नामकर्म है। १४६३. संघायविमोयग (सङ्घातविमोचक)
कर्मणां ज्ञानावरणीयादीनां संघाताद्विमोचयति प्राणिन इति संघातविमोचकः।
(व्यभा ४/२ टी प ६६) जो कर्म संघात/समूह से विमुक्त करता है, वह संघातविमोचक/जिनशासन है।
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