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१४८३. संखिज्ज ( संख्येय) संख्यायत इति संख्येयः ।
१४८४. संग ( सङ्ग)
सज्जति जेण स संगो ।
जिसकी गणना की जा सकती है, वह संख्येय है ।
१४८५. संगकर ( सङ्गकर)
( आचू पृ १०६ )
जिसके द्वारा प्राणी आसक्त होता है, वह संग / आसक्ति है ।
संगं कुर्वन्तीति संगकराः ।
(उच् पृ २१६ ) जो संग / आसक्ति पैदा करते हैं, वे संगकर / इन्द्रिय-विषय हैं । १४८६. संग्रह (संग्रह)
संग्रहणं संगिण्हइ सं गिज्यंते व तेण जं भेया ।
तो संगहो त्ति संगहिय पिंडियत्थं वओ जस्स ॥ ( विभा २२०३ ) अशेष विशेष तिरोधानद्वारेण सामान्यरूपतया समस्तं जगदादत्ते इति संग्रहः । ( प्रसाठी प २४३)
१४८७. संगह ( सङ्ग्रह)
जो विशेष का परिहार करते हुए सामान्य रूप से सम्पूर्ण वस्तुओं को ग्रहण करता है, वह संग्रह ( नय) है |
संगृह्णातीति संग्रहः ।
( आवहाटी १ पृ २१ )
निरुक्त कोश
१४८८. संगाम ( स ग्राम )
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जो संग्रह करता है, वह संग्रह / संग्राहक है ।
१. 'संग्राम' का अन्य निरुक्त
सङ्ग्रामयन्तेऽत्र सङ्ग्राम: । (अचि पृ १७७ )
( व्यभा ४ / २ टी प ५० )
संगमतीति संगामो ।'
( आचू पृ २४३ ) जहां दो सेनाओं का संगम / मिलन होता है, वह संग्राम है । समस्तं ग्रस्यते ग्रस्यंते वा तस्मिन्निति सङ्ग्राम: । ( सूचू १ पृ७९ ) जहां सब कुछ ग्रस्त / नष्ट होता है, वह संग्राम है ।
जहां संग्राम / युद्ध किया जाता है, वह संग्राम है ।
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