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निरुक्त कोश १३७४. विक्खेवणी (विक्षेपणी)
विक्षिप्यते सन्मार्गात् कुमार्गे कुमार्गाद्वा सन्मार्गे श्रोताऽनयेति विक्षेपणी।
(स्थाटी प २०४) जिससे श्रोता सन्मार्ग से कुमार्ग में या कुमार्ग से सन्मार्ग में
क्षिप्त होता है, वह विक्षेपणी (कथा) है । १३७५. विगइ (विगति) विकृति-अशोभनं गतिं नयन्तीति विगतयः।'
(उचू पृ २४६) जो असुन्दर अवस्था की ओर ले जाती है, वह विगति/ विकृति है। १३७६. विगति (विकृति) विकृति णेतीति विगती।
(दअचू पृ २६५) जो विकार पैदा करती है, वह विकृति है। १३७७. विगत्तु (विकर्तृ) विविधया कर्ता विकर्ता।
(भटी पृ १४३२) जो विविध प्रकार से कार्य करता है, वह विकर्ता/आत्मा
१३७८. विग्गह (विग्रह) विगृह्यतेऽनेनेति विग्रहः ।
(उचू पृ ६८) ____ जो कर्म आदि का ग्रहण करता है, वह विग्रह/शरीर है। विशेषेण गृह्यते आत्मना कर्मपरतन्त्रेणेति विग्रहः
(उशाटी प २७१) ___जो कर्म से परतंत्र आत्मा द्वारा गृहीत होता है, वह विग्रह
१. तं आहारित्ता संयतत्वादसंयतत्वं विविध प्रकारं गच्छिहिति विगती।
(दश्रुचू प ५७) २. 'विग्रह' का अन्य निरुक्त-- विगृह्यते रोगादिभिरिति विग्रहः । (अचि पृ १२७) जो रोगों से आक्रान्त होता है, वह विग्रह/शरीर है। विविधं सुखदुःखादिकं गृह्णातीति विग्रहः । (शब्द ४ पृ ३७७) जो विविध प्रकार के सुख-दुःख ग्रहण करता है, वह विग्रह/शरीर है।
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