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निरक्त कोश १४३३. विवेक (विवेक) विविच्यतेऽनेनेति विवेकः।
(आटी प २१७) __ जिसके द्वारा पृथक् किया जाता है, वह विवेक है । १४३४. विस (विष) विवेष्टि विष्णात्ति' वा विषम् ।
(उचू पृ १८५) जो शीघ्रता से व्याप्त होता है, वह विष है।
जो विप्रयोग/शरीर और प्राणों का वियोग करता है, वह विष है। १४३५. विसन्न (विषण्ण) विविधं सन्ना विसन्ना।
(उचू पृ १५३) जो विविध प्रकार से डूबे हुए हैं, वे विषण्ण हैं । १४३६. विसन्नेसि (विषण्णैषिन्)
विसण्णो असंजमो तमेसति विसण्णेसी। (सूचू १ पृ ११३)
जो विषण्ण असंयम को खोजता है, वह विषण्णैषी है। १४३७. विसय (विषय)
विषीदन्त्येषु प्राणिन इति विषयाः। (दटी प २२)
प्राणी जिनमें विषाद प्राप्त करते हैं, वे (इन्द्रिय) विषय
विषीदन्ति-धर्म प्रति नोत्सहन्त एतेष्विति विषयाः।
जो धर्म के प्रति विषाद/अनुत्साह पैदा करते हैं, वे विषय
विषस्योपमा यान्तीति विषयाः। (उशाटी प १९०)
___ जो विष की उपमा को प्राप्त होते हैं, वे विषय हैं । १. विष्-व्याप्तौ, विप्रयोगे। २. 'विषय' का अन्य निरुक्तविषण्वन्ति विषयिणं स्वेन रूपेण निरूपणीयं कुर्वन्ति विषयाः ।
(शब्द ४ पृ ४४६)
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