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निरक्त कोश
२५७
जो वागुरा/मृगजाल के द्वारा जीवन यापन करते हैं, वे
वागुरिक शिकारी हैं। १३५७. वागरण (व्याकरण) वागरिज्जतीति वागरणं ।
(आचू पृ १२) जिसके द्वारा अभिव्यक्ति की जाती है, वह व्याकरण/कथन
१३५८. वागरण (व्याकरण) व्याक्रियन्ते लौकिकाः सामयिकाश्च शब्दा अनेनेति व्याकरणम् ।
(आवमटी प २५९) जिसके द्वारा लौकिक और सामयिक शब्दों की व्याख्या की
जाती है, वह व्याकरण है। १३५९. वाणमंतर (दे)
वनान्तराणि तेषु भवा वानमन्तराः। (प्रसाटी प ३३३)
जो वनों में वास करते हैं, वे वाणमंतर/व्यंतर हैं। १३६०. वाणी (वाणी) वणयतीति' वाणी।
(दअचू पृ १५६) जो शब्द करती है, वह वाणी है।। वदिज्जते वयणिज्जा वा वाणी।
(दजिचू पृ २३५) जो बोली जाती है, वह वाणी है । १३६१. वादिसमोसरण (वादिसमवसरण)
वादिनः-तीथिकाः समवसरन्ति–अवतरन्त्येष्विति समवसरणानि-विविधमतमोलकास्तेषां समवसरणानि वादिसमवसरणानि।
(स्थाटी प २५६) ___जहां विविध मत-मतान्तरों के लोग एकत्रित होते हैं, वे
वादिसमवसरण हैं। १. वनानां समूहो वानं तस्यान्तरे भवन्तीति वानमन्तरा इति ।
(अचि पृ १६) २. वणि-शब्दे ।
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