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१२८८. लंगलिक (लाङ्गलिक)
लाङ्गलं वा प्रहरणं येषां गले वा लम्बमानं सुवर्णादिमयं तद्येषां ते लाङ्गलिकाः । ( ज्ञाटी प ६४ ) जिनके लांगल / हल आजीविका का साधन होता है, वे लांगलिक / किसान हैं ।
front आयुध लांगल / हल होता है, वे लांगलिक / बलराम
हैं ।
जिनके गले में स्वर्णमय हलाकृति होती है, वे लांगलिक / कापटिक हैं ।
१२८६. लंबण (लम्बन )
लम्ब्यन्ते इति लम्बनाः ।
( ज्ञाटी प १६५ )
जो स्थिर रहने में आलंबन बनते हैं, वे लंबन / लंगर हैं । १२६०. लक्खण (लक्षण)
लक्खिज्जइत्ति नज्जइ पच्चक्खियरो व जेण जो अत्थो । तं तस्स लक्खणं
लक्ष्यते तदन्यव्यवच्छेदेन ज्ञायते येन तल्लक्षणम् ।
है |
१२६१. लयण (लयन )
कपडिया जत्थ लयंति तं लयणं ।
निरुक्त कोश
(सूर्यटीप २५६ )
जिससे वस्तु का पृथक् अस्तित्व जाना जाता है, वह लक्षण
१२६२. लाढ (लाढ)
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............. ॥ (दभा १२ )
( अनुद्वाच् पृ ५३ )
कार्पेटिक जिसमें लीन होते हैं, वह लयन / पाषाणगृह है ।
येनकेनचित् प्रासुकाहा रोपकरणादिगतेन यापयति पालयतीति लाढः ।
है, वह लाढ / संयमी है ।
जो यत् किञ्चित् सामग्री से विधिपूर्वक जीवनयापन करता
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विधिना
आत्मानं
( सूटी १ प ९८९ )
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