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निरुक्त कोश
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जो रु / पृथ्वी से पैदा होते हैं, जीवित रहते हैं, वे रुजक / वृक्ष
हैं ।
१२८२. रुद्द (रौद्र)
रोतीति रुद्रः, तेण कृतं रौद्रम् ।'
( दअचू पृ १६ ) जो अत्यंत दीनता से अश्रुविमोचन करता है, चिन्तन करता है, वह रौद्र ध्यान है ।
१२८३. रूव (रूप)
रूप्यते - अवलोक्यत इति रूपम् । जो देखा जाता है, वह रूप है ।
१२८४. रोग (रोग)
रुजतीति रोगः ।
जो रुग्ण बनाता है, वह रोग है ।
- १२८५. रोयग ( रोचक )
सदनुष्ठानं रोचयत्येव केवलं न पुनः कारयतीति रोचकम् ।
१२८६. रोवग (रोपक )
रुपंति रोपणीया वा रोपका ।
जो विहित अनुष्ठान में केवल रुचि / प्रीति करती है, वह राचक ( सम्यकत्व ) है ।
१२८७. लउडसाइ ( लकुटशायिन् )
( स्थाटी प २३)
जिनको रोपा जाता है, वे रोपक / पौधे हैं ।
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( दअचू पृ १७ )
( प्रसाटी प २८२ )
लगण्डं - वक्रकाष्ठं तद्वत् शेते यः स लगण्डशायी ( लकुटशायी ) । ( औटी पृ ७५ )
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( दअचू पृ ७ )
जो लकुट | वकाष्ठ की भांति शयन करता है, वह लकुट - शायी / कायक्लेश का एक प्रकार है ।
१. हिंसाद्यतिक्रौर्यानुगतं रौद्रम् ।
( आवहाटी २ पृ ६३ ) संछेदनैर्दहनभञ्जनमारणैश्च बन्धप्रहारदमनैविनिकृन्तनैश्च । यो याति रागमुपयाति च नानुकम्पां, ध्यानन्तु रौद्रमिति तत्प्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥ ( दटी प ३२)
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