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निरक्त कोश १२७७. रायदारिय (राजद्वारिक)
राजद्वारमर्हतीति राजद्वारिकम् । (बृटी पृ १६२)
जो राजद्वार के योग्य है, वह राजद्वारिक है।। राजाऽमात्यमहत्तमादिभवनेषु गच्छभिर्यत् परिभुज्यते तद् राजद्वारिकम् ।
(बृटी पृ १६१) राजद्वार पर जाते समय जिसका उपयोग किया जाता है,
वह राजद्वारिक है। १२७८. रायहाणी (राजधानी) राजा धीयते-विधीयते अभिषिच्यते यासु ता राजधान्यः ।
(स्थाटी प ४५८) जिनमें राजा का अभिषेक किया जाता है, वे राजधानियां
१२७९. रुइल (रुचिल) रुचिः-दीप्तिस्तां लाति-आददति रुचिलानि ।
(सूटी २ प ७) जो रुचि/दीप्ति को धारण करता है, वह रुचिल/सुन्दर
१२८०. रुक्ख (रूक्ष)
रुक् पृथिवी तं खातीति रुक्खो ।' (निचू २ पृ ३०६)
___ जो रुक्/पृथ्वी को खाता है, वह रूक्ष वृक्ष है। रुत्ति पुहवी खत्ति आगासं तेसु दोसुवि जहा ठिया तेण रुक्खा ।
__ (दजिचू पृ ११) जो रु/पृथ्वी और ख/आकाश-दोनों में स्थित हैं, वे रूक्ष/
वृक्ष हैं। १२८१. रुजग (रुजक) . रुत्ति पृथिवी तीय जी (जा) यंतित्ति रुजगा। (दजिचू पृ ११) १. 'रूक्ष' का अन्य निरुक्त
रूक्षयति रूक्षः। (अचि पृ २४८) जो सूखकर रूक्ष/टूंठ हो जाता है, वह रूक्ष/वृक्ष है।
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