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निरक्त कोशः जो जीव को अनुरञ्जित/मलिन करता है, वह रज (कर्म)
१२६६. रण्ण (राजन्) राजनाद्'-दीपनाद् राजा।'
(स्थाटी प १६१) जो मंत्री आदि से सुशोभित होता है, वह राजा है। १२६७. रत्ति (रात्रि)
सन्ध्या यतो राजते ---शोभते तेन रात्रिः । (बृटी पृ ८५७)
जिससे सन्ध्या शोभित होती है, वह रात्रि है। १२६८. रय (रजस्) रंजयतीति रजः।
(सूचू १ पृ ५६) जो रञ्जित/मटमैला कर देती है, वह रज/धली है । रीयत इति रजः।
(उचू पृ १६१) जो गति करती है, वह रज/धूली है। १२६६. रयणप्पभा (रत्नप्रभा) रत्नानां प्रभा यस्यां रत्नैर्वा प्रभाति-शोभते या सा रत्नप्रभा ।
(स्थाटी प ५०१) जो रत्नों से प्रभास्वर है, वह रत्नप्रभा है । १२७०. रयहरण (रजोहरण) रजो ह्रियते-अपनीयते येन तद्रजोहरणम् ।
(स्थाटी प ३२७) जो रजों का अपहरण/अपनयन करता है, वह रजोहरण (धर्मोपकरण) है। १. राजतेऽमात्यादिभिरिति राजा । २. 'राजा' का अन्य निरुक्तरञ्जयति प्रजामिति वा । (अचि पृ १५४)
जो प्रजा को प्रसन्न रखता है, वह राजा है । ३. 'रात्रि' का अन्य निरुक्तराति सुखं रात्रिः। (अचि पृ ३१)
जो सुख प्रदान करती है, वह रात्रि है।
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