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निरक्त कोश १३१०. वइरोयण (वैरोचन) विविधैः प्रकारै रोच्यन्ते-दीप्यन्त इति विरोचनास्ते वैरोचनाः ।
__ (स्थाटी प १६८) जो विविध प्रकार से रोचित/दीप्त हैं, वे वैरोचन/इन्द्र
१३०११. वइस (वैश्य) वित्ति विसंतीति वइस्सा।
(आचू पृ ५) जो वृत्ति/व्यापार में प्रवेश करते हैं, वे वैश्य हैं। कलादिभिर्विशन्ति लोकमिति वैश्याः। (सूचू २ पृ ४४२)
जो कला आदि के द्वारा लोक में प्रवेश करते हैं, वे वैश्य
वणिक् हैं। १३१२. वंकसमायर (वक्रसमाचर)
वको–असंजमो तं समायरति वंकसमायरो ।
जो वक्र—असंयम का समाचरण करता है, वह वक्रसमाचर
नाणागइकुडिलो वंको-संसारो तं समायरति वंकसमायरो।
(आचू पृ ३४) जो वक्र/संसार-भ्रमण का समाचरण करता है, वह वक्र
समाचर है। १३१३. वंजण (व्यञ्जन) जिज्जति जेण अत्थो, वंजणमिति भण्णते ।।
(जीतभा १०१०) जिससे अर्थ की अभिव्यंजना होती है, वह व्यंजन/अक्षर
१३१४. वंतर (व्यन्तर) विगतमन्तरं-विशेषो मनुष्येभ्यो येषां ते व्यन्तराः ।
(प्रसाटी प ३३२) जो मनुष्यों के निकट होते हैं, वे व्यन्तर हैं ।
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