________________
निरक्त कोश
२४१ १२७१. रस (रस) रस्यते-आस्वाद्यते इति रसः।
(स्थाटी प २३) जिसका आस्वाद लिया जाता है, वह रस है। रस्यन्ते-अन्तरात्मनाऽनुभूयन्त इति रसाः।।
(अनुद्वामटी प १२४) अन्तरात्मा से जिनका अनुभव किया जाता है, वे रस हैं । १२७२. रसग (रसग) रसमनुगच्छन्तीति रसगा:।
(आटी प २३७) जो रस में उत्पन्न होते हैं, वे रसज प्राणी हैं । १२७३. रसहरणी (रसहरणी) रसो ह्रियते-आदीयते यया सा रसहरणी।
(भटी प ८८) जिसके द्वारा रस का हरण/ग्रहण किया जाता है, वह
रसहरणी/नाभिनाल है। १२७४. रसायण (रसायन) रसः अमृतरसस्तस्यायनं-प्राप्तिः रसायनम् ।।
(विपाटी प ७५) जिसके द्वारा रस/अमृत की प्राप्ति होती है, वह रसायन
औषधि है। १२७५. रसेसि (रसैषिन्) रसं एसन्तीति रसेसिणो।
(आचू पृ ३३८) जो रस की खोज/प्रार्थना करते हैं, वे रसैषी हैं। १२७६. राअ (राग) रज्जंति तेण तम्मि व..... ....... राओ।
(विभा २६६१) जिससे प्राणी रञ्जित/आसक्त होता है, वह राग है। १. रसायन विधयः--स्थापनमायुर्मेधाकरं रोगापहरणसमर्थं च तदभिधायक
तन्त्रमपि रसायनम् । (विपाटी प ७५) २. रज्यन्ते तेन तस्मिन् वा सति क्लिष्टसत्वाः प्राणिनः स्यादिष्विति
रागः। (विभामहेटी २ पृ २२२)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org