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पभणति वा पतिभा ।
५१. पत्त (पात्र)
जो प्रकर्षरूप से कथन करती है, वह प्रतिभा है ।
पतन्तमाहारं पातीति पात्रम्
५२. पत्त (पत्र)
パ
( आटी प २७६ )
जो गिरते हुए आहार को धारण करता है, वह पात्र है ।
पात्यतेऽनेनात्मा तमिति पत्रम् |
( सूचू २ पृ ३४७) जिसके द्वारा पक्षी उड़ान भरता है, वह पत्र / पंख है । पतन्तं त्रायत इति पत्रम् | ( उशाटी प २६६ )
जो गिरते हुए की रक्षा करता है, वह पत्र / पंख है |
६५३. पत्ती (पत्नी)
पाति तमिति पत्निः ।
५४. पत्तोय ( पत्रोपग )
जिसकी रक्षा की जाती है, वह पत्नी है ।
पत्राण्युपगच्छति - प्राप्नोति पत्तोपगः ।
५५. पत्थार ( प्रस्तार )
प्रस्तीर्यत इति प्रस्तारः ।
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निरुक्त कोश
( सूचू १ पृ २३३)
जो पत्तों से युक्त होते हैं, वे पत्रोपग / वृक्ष हैं ।
चटाई है ।
५६. पद (पद)
गम्मते इति पदं ।
१. 'पात्र' के अन्य निरुक्त
पाति आधेयं पात्रम् ।
जो आधेय की रक्षा करता है, वह पात्र है । पीयतेऽस्मादिति पात्रम् । (अचि पृ २२७ ) जिससे पान किया जाता है, वह पात्र है ।
( बृटी पृ ६६१)
जिसे प्रस्तारित किया जाता है / फैलाया जाता है, वह प्रस्तार /
( उच् पृ २०८ )
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( स्थाटी प १०७ )
( दअचू पृ ३६ )
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