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निरुक्त कोश
११७६. भेद (भेद) - कर्माणि भिनत्तीति भेदः। ...... (सूचू १ पृ २०४)
जो कर्मों का भेदन करता है, वह भेद/संयम है। ११८०. भेरव (भैरव) भयं करोतीति मेरवं ।
(आचू पृ.२८४) - जो भय पैदा करता है, वह भैरव/भयंकर है। ११८१. भोअ (भोग)
भुज्यते—सकृदुपभुज्यत इति भोगः। (उशाटी प ६४४)
____ जिनका एक बार आसेवन किया जाता है, वे भोग हैं। ११८२. भोइया (भोजिका)
भोजय ति' भर्तारमिति भोजिका । (बृटी पृ २७७)
जो भर्ता/स्वामी की सेवा करती है, वह भोजिका/भार्या है । ११८३ भोमिज्ज (भौमेयक)
भूमौ--पृथिव्यां भवाः भौमेयकाः। (उशाटी प ७०१)
__जो भू/पृथ्वी में वास करते हैं, वे भौमेयक/भवनवासी हैं। ११८४. भोयण (भोजन) भुज्जत इति भोयणं ।
(आचू प २६६) जो खाया जाता है, वह भोजन है। ११८५. मइ (मति) मन्नति जेण सा मती।
(आचू पृ ३८१) मन्यते-इन्द्रियमनोद्वारेण नियतं वस्तु परिच्छिद्यतेऽनयेति अतिः।
(प्रसाटी प ३६०) जो इन्द्रिय और मन के द्वारा वस्तु का ज्ञान करता है, वह मति (ज्ञान) है। १. सति भुज्जइत्ति भोगो सो पुण आहारपुप्फमाईओ ।(उशाटी प ६४५) २. भुज-पालनाभ्यवहारयोः ।
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