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"निरक्त कोश
२३३ १२३४. मायण्णु (मात्रज्ञ) मत्तं जाणाति मातण्णो।
(आचू पृ ७६) जो मात्रा को जानता है, वह मात्रज्ञ है। १२३५. माया (माया) मीयते' अनयेति माया।
(स्थाटी प १८६) __ जिससे तथ्य का गोपन किया जाता है, वह माया है। १२३६. मार (मार) खणे खणे मारयतीति मारो।
(आचू प १०८) जो क्षण-क्षण घात करता है, वह मार/मृत्यु है । १२३७. मास (मास) मीयते तमिति मासम् ।'
(उचू पृ १८४) जिसका मान/माप होता है, वह मास/महीना है । १२३८. माहण (माहण) मा हणह सव्वसत्तेहि भणमाणो अहणमाणो य माहणो भवति ।
(सूचू १ पृ २४६) जो कहता है-माहण/मत मारो और स्वयं उसका आचरण __ करता है, वह माहण/ब्राह्मण/श्रमण है । १. मीयते अपरोक्षवत् प्रदर्श्यतेऽनया माया । (शब्द ३ पृ ७०१) २. 'माया' का अन्य निरुक्त
माति अनया माया। (अचि पृ८८) जिससे दिखावा किया जाता है, वह माया है। ३. (क) मानासनान्मासः, अन्यानि मानानि समयावलिकादीनि असतीति मासः, मानानि वा द्रव्यक्षेत्रादीन्यसतीति मासः। (निचू ४ पृ ३८८) (ख) माति मिमीते वा मासः, मस्यते परिमीयते सावनचान्द्रसूर्यादिभेदेनेति । (अचि पृ ३४)
जिसके द्वारा सावनमास, चन्द्रमास, सूर्यमास आदि मापे जाते हैं, वह मास है।
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