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१२३०. मांस (मांस)
मन्यते स भक्षयिता येनोपभुक्तेन बलवन्तमात्मानमिति मांसं । ( उच्च पृ १३३ )
जिसे खाकर व्यक्ति अपने आपको पुष्ट मानता है, वह मांस
है ।
१२३१. माण (मान)
मननम् - अवगमनं मन्यते वाऽनेनेति मानः ।
अपने आपको बड़ा मानना मान है ।
१२३२. माण (मान)
मीयते इति मानम् ।
१२३३. माणव (मानव)
माणंतित्ति माणवा ।
जो मनन करते हैं, वे मानव हैं ।
मा-निषेधे नवः प्रत्यग्रो मानवः ।
जिसके द्वारा मापा जाता है, वह मान / माप है ।
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निरुक्त कोश
( स्थाटी प १८६ )
( आमटी प ४४६ )
३. 'मान' का अन्य निरुक्त
मत्समो नास्तीति मननं मानः । (अचि पृ७४ )
मेरे जैसा दूसरा कोई नहीं है, ऐसा मानना मान है ।
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(भटी पृ १४३२)
जिसका अस्तित्व नया नहीं है, अनादिकालीन है, वह मानव
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१. मान्यतेऽनेन मांसम् । ( सूटी २ प १५१ )
'मांस' का अन्य निरुक्त
मांस भक्षयितामुत्र यस्य मांसमिहादम्यहम् । एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ ( अचि पृ १४० )
यहां मैं जिसका मांस खा रहा हूं, परलोक में मां / मेरा मांस स / वह खायेगा - यही मांस का मांसत्व है |
( अचू पृ ७२ )
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