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निरुक्त कोश
१२२०. महापाण (महापान)
पिबति अर्थपदानि यत्रस्थितस्तत्पानं, महच्च तत्पानं च महापानम् ।
(व्यभा ६ टी प ४६) जिसमें महान् अर्थपदों का पान ज्ञान किया जाता है, वह
महापान (ध्यान साधना) है। १२२१. महाभाग (महाभाग) महत्तं भजतीति महाभाग।
(आवचू १ पृ ८६) जो महान् /मोक्ष का आसेवन करता है, वह महाभाग है। १२२२. महामुणि (महामुनि) महान्तं मुनतीति महामुनिः।
(उचू पृ ५९) जो महान्/मोक्ष को जानता है, वह महामुनि है । १२२३. महावीर (महावीर) पहाणो वीरो महावीरो।
(दअचू पृ ७३) महन्तं वीरियं यस्य स भवति महावीरो। (आवचू १ पृ ८६)
जिसका वीर्य/पराक्रम महान् है, वह महावीर है । १२२४. महित (महित)
त्रैलोक्यस्स मनोहिता महिता।
जो तीनों लोकों के मन में समाविष्ट हैं, वे महित/अर्हत हैं। महिमाकरणेन महिता।
(नंचू पृ ४६) जिनकी महिमा/स्तुति की जाती है, वे महित/पूजित हैं। १२२५. महिस (महिष) मह्यां शेते महिषः।
(अनुद्वा ३६८) १. पिबति मिनोति एकाौँ । (व्यभा ६ टी प ४६) २. 'महिष' के अन्य निरुक्तमहति महिषः। (अचि पृ २८६) जो विशालकाय है, वह महिष है ।
(मह, --Increase आप्टे पृ १२४६)
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