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निरुक्त कोश
११९८. मणसमाहारणा (मनःसमाधारणा)
मनसः समिति-सम्यग् आङिति-मर्यादयाऽऽगमाभिहितभावाभिव्याप्त्याऽवधारणा-व्यवस्थापनं मनःसमाधारणा।।
(उशाटी प ५६२) मन का सम्यक् रूप से अवधारण व्यवस्थापन करना
मनःसमाधारणा है। ११६६. मणाम (मनआप)
मनःअमन्ति–गच्छन्ति यास्ताः मनपाः। (स्थाटी प ४४४) मनांसि आप्नुवंति आत्मवशतां नयन्तीति मनआपाः ।
(राटी पृ ८५) जो मन को आकृष्ट कर लेता है, वह मनआप/मनोज्ञ है। १२००. मणाम (दे) मन्नइ मणसा मणामं तं ।
(प्रसा १४०) जो मन को इष्ट है, वह मणाम/मनोज्ञ है। १२०१. मणि (मणि)
मद्यते मन्यते वा तमलङ्कारमिति मणिः। (उचू पृ १५१) __जो अलंकार को विशिष्ट और सुशोभित करती है, वह
मणि है। १२०२. मणुअ (मनुष्य) मनसि शेते मनुष्यः।
(उचू पृ ६६) जो मनचिंतन में खोया रहता है, वह मनुष्य है । १. 'मणि' शब्द का अन्य निरुक्तमणति महार्घतां मणिः। (अचि पृ २३५)
जो मूल्यवान् होती है, वह मणि है । (मण शब्दे) २. 'मनुष्य' का अन्य निरुक्तमनोरपत्यं मनुष्यः। जो मनु की सन्तान है, वह मनुष्य है ।
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