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निरक्त कोश प्रतियोगी के द्वारा जो अपने स्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं,
वे भाव्य/संस्कारित हैं। ११६८. भासा (भाषा) अत्थं वंजयतीति भासा।
(वअचू पृ १६४) जो अर्थ का भाषण/अभिव्यञ्जन करती है, वह भाषा है। भाष्यते इति भाषा।
(आवहाटी १ पृ ६) जो बोली जाती है, वह भाषा है । ११६६. भासुरा (भास्वरा) पभासतीति भासुरा।
(दजिचू पृ ३२४) जो भा/प्रकाश से दीप्त है, वह भास्वरा/सिद्धगति है। ११७०. भिक्खाग (भिक्षाक) भिक्षां भक्षन्तीति भिक्षाकाः ।
(आचू पृ ३४४) जो भिक्षाभोजी हैं, वे भिक्षाक हैं। ११७१. भिक्खु (भिक्षु)
भेत्ताऽऽगमोवउत्तो दुविह तवो भेअणं च भेत्तव्वं । अट्टविहं कम्मखुहं तेण निरुत्तं स भिक्खुत्ति ॥ (दनि ३४२) भिदंतो यावि खुहं भिक्खू ......॥
(व्यभा २१२) जो तपस्या से क्षुद्/कर्मों का भि/भेदन करता है, वह भिक्षु
जं भिक्खमत्तवित्ती तेण व भिक्खू । (दनि ३४४) भिक्खणसीलो भिक्खू,.....।
(निभा ६२७५) जो शुद्ध भिक्षा से जीवन-यापन करता है, वह भिक्षु है । भिक्षाभोगी वा भिक्खू ।
(निचू ४ पृ २७१) जो भिक्षाभोजी है, वह भिक्षु है। १. भेदकः साधुः,-तपो भेदनं वर्तते, भेत्तव्यं कर्म, तच्च क्षुदादिदुःख
हेतुत्वात् क्षुद् शब्दवाच्यं, यः शास्त्रनीत्या तपसा कर्म भिनत्ति सभिक्षुः।
(दटी प२६१)
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