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११५७. भवसिद्धिय (भवसिद्धिक)
भविष्यति भवा-- भाविनी सा सिद्धि: - निर्वृतिर्येषां ते भवसि - ( स्थाटी प२८ )
१.१५८. भवोवग्गह (भवोपग्रह )
द्धिकाः ।
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जिन्हें भव / भविष्य में सिद्धि प्राप्त होगी, वे भवसिद्धिक हैं ।
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भवे - मनुष्यभवे उप- - समीपेन गृह्यते - अवष्टम्भ्यते यैस्तानि भवोपग्रहाणि । ( प्रज्ञाटी प ६०३ )
११५६. भागहार (भागहार )
जिनके कारण (केवली को) मनुष्यभव में रहना पड़ता है, वे भवोपग्राही / अघाति कर्म हैं ।
भागं हरतीति भागहारः ।
है ।
११६०. भायण (भाजन )
( व्यभा २ टीप ८ )
जो भाग का हरण करता है, वह भागहार (भाग / गणित )
भाजनाद् विश्वस्याश्रयणाद् भाजनम् ।
जो विश्व के लिए भाजन / आश्रय का भाजन / आकाश है ।
११६१. भार (भार)
बिर्भात भ्रियते वाऽसौ भारः । '
जो भारी करता है, वह भार है ।
जो ढोया जाता है, वह भार है ।
निरुक्त कोश
११६२. भारही (भारती )
अत्यभारं धरेतीति भारती ।
( भटी पृ १४३१ ) कार्य करता है, वह
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१. मार - गुरुत्वपरिमाणे तद्वति द्रव्ये । ( वा पृ ४६५२ )
२. 'भारती' के अन्य निरुक्त
( सुचू १ पृ १३३ )
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( अचू पृ १५९ )
भरतानां नटानामियं देवता भारती । भरतानां ऋत्विजां स्तुतिलक्षणा तैरवतारित्वात् इति याज्ञिकाः । (अचि पृ ५६ )
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