________________
निरक्त कोश
२१७ ११५१. भमर (भ्रमर) भ्रमति च रौति च भ्रमरः ।
(अनुद्वा ३६८) जो भ्रमण करता है और शब्द करता है, वह भ्रमर है। ११५२. भयंतु (भयत्रातृ) भयातायंत इति भयंतारो।
(सूचू २ पृ ३२६) जो भय से त्राण देता है, वह भयन्तार/मुनि है । ११५३. भव (भव्य) भवति–परमपदयोग्यतामासादयतीति भव्यः ।
(नकटी ४ पृ १२७) जो परमपद/मोक्ष-गमन की योग्यता को प्राप्त करता है, वह
भव्य है। ११५४. भव (भव) भवतीति भवः।
(उचू पृ १८८) जो होता है, वह भव/जन्म है । भवन्ति प्राणिनोऽस्मिन्निति भवः । (प्रज्ञाटी ३२८)
जिसमें जीव उत्पन्न होते हैं, वह भव/जन्म है । ११५५. भवंत (भवान्त) भवखवंतो भवंतो य।
(व्यभा २/१२) भवमंतयति भवस्यान्तं करोतीति भवान्तः।।
(व्यभा २ टी प६) जो भव/नरक आदि गति का अन्त करता है, वह भवान्त/
भिक्षु है। ११५६. भववेयणिज्ज (भववेदनीय) भवेन-जन्मना वेद्यते-अनुभूयते यत्तद् भववेदनीयम् ।
(स्थाटी प २६४) जिसका भव/वर्तमान जन्म में वेदन किया जाता है, वह भववेदनीय (कर्म) है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org