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१०३३. पहाण (प्रहान )
प्रहीयत इति पहाणं ।
प्रकृष्ट रूप से क्षीण होना प्रहान है ।
१०३४. पहिय ( पथिक )
पथि गच्छन्तीति पथिकाः ।
जो पथ पर चलते हैं, वे पथिक हैं ।
१०३५. पाई (पात्री)
पतंति तस्यामिति पात्री |
जिसमें (पदार्थ) गिरते हैं, वह पात्री है ।
१०३६. पाउक्करण ( प्रादुष्करण )
१०३७. पाओवगमन ( पादपोपगमन )
प्रादुः --- प्रकटत्वेन देयस्य वस्तुनः करणं प्रादुष्करणम् ।
निरुक्त कोश
१०३८. पागसासण ( पाकशासन)
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( उचू पृ १८ )
साधु को देने के लिए अप्रकाशित वस्तु को प्रकाशित करना प्रादुष्करण / भिक्षा का एक दोष है ।
( ज्ञाटी प १५६ )
( सू २ पृ ३६३)
पादपो - वृक्षः, तस्येव छिन्नपतितस्योपगमनम् - अत्यन्त निश्चेष्टतयाऽवस्थानं यस्मिंस्तत्पादपोपगमनम् ।
( स्थाटी प८ )
पागे बलवगे अरी जो सासेति सो पागसासणो ।
( प्रसाटी प १३६ )
छिन्न पादप / वृक्ष की तरह उपगमन / अवस्थान करना पादपोपगमन है |
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( दश्रुचू प ६४ )
जो पाक नामक बलवान् शत्रु को शासित करता है, वह पाकशासन / इन्द्र है ।
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