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निरक्त कोश १०२३. पवयण (प्रवचन)
अहवा पगयपसत्थं, पहाणवयणं व पवयणं । . अहव पवत्तयतीई, नाणाई पवयणं तेणं ।। (जीतभा २) - जो प्रशस्त और प्रधान वचन है, वह प्रवचन है ।
. जो ज्ञान आदि का प्रवर्तन करता है, वह प्रवचन है । प्रकर्षण वक्ति तत्त्वानीति प्रवचनं । (आक्चू १ पृ ३६)
. जो प्रकृष्टरूप से जीव आदि तत्त्वों का प्रतिपादन करता है,
वह प्रवचन है। १०२४. पवयणनिण्हव (प्रवचननिह्नव)
प्रवचन-जिनागमं निल वते-अपलपन्त्यन्यथा तदेकदेशस्याभ्युपगमात्ते प्रवचननिह्नवकाः। (औटी पृ २०२)
जो जिनप्रवचन का निवन अन्यथा अपलपन करते हैं, वे
प्रवचनचिह्नव हैं। १०२५. पवह (प्रवह)
प्रवहति—प्रवर्तते अस्मादिति प्रवहः। (भटी पृ १११५)
जहां से प्रादुर्भाव होता है, वह प्रवह/उद्गम स्थल है । १०२६. पवा (प्रपा)
पिबिस्संति पेहियादि सा पवा। (आचू पृ ३१२)
जहां पथिक पानी पीते हैं, वह प्रपा/प्याऊ है । १०२७. पध्वइय (प्रव्रजित)
पम्वइए इति प्रगतो गिहातो संसारातो वा। (दअचू पृ ३६)
जो घर या संसार से निकल जाता है, वह प्रव्रजित है। वधादीयो पावादो वजितो पव्वयितो। (दअचू पृ २३४)
जो प्राणातिपात आदि पापों से 'वजित/दूर है, वह प्रवजित
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