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निरुक्त कोश
२०३ १०७३. पासिम (दृष्टिमत्) पस्सतीति पासिमं ।
(आचू पृ १२५) जो देखता है, वह पश्यक/द्रष्टा है। १०७४. पासिय (पाशिक) पाथेन–बन्धनविशेषेण चरन्तीति पाशिकाः। (प्रटी प ३७)
जो पाश/जाल आदि के द्वारा जीवन यापन करते हैं, वे
पाशिक हैं। १०७५. पाहुडा (प्राभृता)
प्र इति प्रकर्षण आ इति-साधुदानलक्षणमर्यादया भृता-निर्वतिता यका भिक्षा सा प्राभृता।
(प्रसाटी प १३६) जो भिक्षा खासतौर पर साधु को देने के लिए बनाई जाती
है, वह प्राभृता है। १०७६. पाहुणिज्ज (प्राहवनीय) प्रकर्षण आहवनीयं पाहुणिज्जं ।
(औटी पृ १०) ___ जहां लोग प्रचुर मात्रा में भेंट चढाते हैं, वह प्राहवनीय/
चैत्य है। १०७७. पिउ (पितृ) पाति विभति वा पुत्रमिति पिता ।
(उचू पृ १५०) जो पुत्र/सन्तान का रक्षण/पोषण करता है, वह पिता है । १०७८. पिंडोलग (दे) पिंडेसु दिज्जमाणेसु उल्लंतीति पिंडोलगा।
(आचू पृ ३२३) जो पिण्ड भिक्षा से निर्वाह करता है, वह पिंडोलग/भिक्षा
जीवी है। १०७६. पिंडोलय (पिण्डावलग)
पिण्ड्यते तत्तद्गृहेभ्य आदाय संघात्यत इति पिण्डः। तमवलगति -सेवते पिण्डावलगः।
(उशाटी प २५०)
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