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निरक्त कोश
जो भोजन घर-घर से इकट्ठा किया जाता है, वह पिण्ड है । जो पिण्ड का अवलगन/सेवन करता है, वह पिण्डावलग
१०८०. पिट्ठ (पृष्ठ)
स्पृशंति तां पृश्यते वाऽसाविति पृष्ठिः। (उचू पृ २०६)
जिसे तैल आदि से सींचा जाता है, वह पृष्ठ/पीठ है। १०८१. पिट्ठिमंसित (पृष्ठमासिक)
पिठ्ठीमंसं खायंतीति पिठ्ठमंसितो। (दश्रुचू प ४०)
___ जो पीठ पीछे/परोक्ष में निंदा करता है, वह पृष्ठमासिक
चुगलखोर है। १०८२. पियंवाइ (प्रियवादिन्)
प्रियमेव वदतीत्येवंशीलः प्रियवादी। (उशाटी प ३४७)
जो प्रिय ही वोलता है, वह प्रियवादी है। १०८३. पिसुण (पिशुन) पीतिसुण्णो पिसुणो।
(निभा ६२१२) पीतिसुण्णं करोतित्ति पिसुणो।
(दजिचू पृ ३१६) ___ जो प्रीति से शून्य करता है, वह पिशुन/चुगलखोर है । १०८४. पीढसप्पि (पोठसपिन्) पीठाभ्यां परिसपतीति पीठसप्पी। (सूचू १ पृ ६६)
जो पीठ के सहारे चलता है, वह पीठसो/पंगु है । १०८५. पुक्खलसंवट्टग (पुष्कलसंवर्तक)
पुष्कलं—सर्वअशुभानुभावरूपं भरतभूरोक्ष्यदाहादिकं प्रशस्तस्वोदकेन संवर्तयति--नाशयतीति पुष्कलसंवर्तकः ।
(जंटी प १७३) जो पृथ्वी के पुष्कल सम्पूर्ण दोषों का अपने प्रशस्त जल से संवर्तन/नाश करता है, वह पुष्कलसंवर्तक (मेघ) है । १. (क) पृष्यते सिच्यते इति पृष्ठम् । (शब्द ३ पृ २३१)
(ख) स्पृश्—to sprinkle (आप्टे पृ १७२८)
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