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निरुक्त कोश
जो सब ओर से (संयम को ) मथ डालता है, वह परिमन्धु /
व्याघात है ।
१०१४. पलीण ( प्रलीन )
पइ पइ लीणा उ होंति तु पलीणा ।
मोहादी वा पलयं जेसि गया ते पलीणा तु ॥ '
प्रलीन हैं ।
जो पद पद पर लीन हैं, वे प्रलीन हैं ।
जिनके क्रोध आदि ( कषाय ) प्रलय को प्राप्त हो गए हैं, वे
१०१५. पलंब ( प्रलम्ब )
प्रलम्बते इति प्रलम्बः ।
जो लटकता है, वह प्रलम्व है ।
१०१६. पलंब ( प्रलंब )
है । १०१७. पल्लवगाहि ( पल्लवग्राहिन् )
प्रकर्षेण वृद्धि याति वृक्षोऽस्मादिति प्रलम्बम् । (व्यभा २ टीप २) जिसके द्वारा वृक्ष वृद्धि को प्राप्त होता है, वह प्रलंब / मूल
( जीतभा ६६५ )
१०१८. पल्ली ( पल्ली )
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अपरापरशास्त्रतरूणां पल्लवान् — तन्मध्यगतालापक - श्लोक-गाथारूपान् सूत्रार्थलवान् स्वरुच्या ग्रहीतुं शीलमस्येति पल्लवग्राही । ( बृटी पृ २३५ ) जिसका पल्लव / थोड़ा थोड़ा या बीच-बीच से ग्रहण करने का स्वभाव है, वह पल्लवग्राही / अपूर्ण ज्ञाता है ।
(राटी पृ १०८ )
पाल्यन्तेऽनया दुष्कृत विधायिनो जना इति पल्ली ।
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१. प्रकर्षेण लीना लयं विनाशं गताः क्रोधादय येषामिति प्रलीनाः ।
( व्यभा १० टी प ६० )
( उशाटी प ६०५ )
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