________________
निरुक्त कोश
१८७
. जो परम/मोक्ष के लिए सम्यक् प्रयत्न करते हैं, वे परम
संयत हैं। ९८५. पराघाय (पराघात) परानाहन्ति पराघातनाम ।
(प्राक १ टी पृ ३३) जो दूसरों का हनन घात करता है, वह पराघात (नामकर्म)
९८६. पावाउय (प्रावादुक) भृशं वदंतीति प्रावादुकाः।
(सूचू २ पृ ३७१) जो पुनः पुनः अपने मत का प्रतिपादन करते हैं, वे प्राव
दुक मतप्रवर्तक हैं। ६८७. परिग्गह (परिग्रह) परिगृह्यत इति परिग्रहः ।
(प्रटी प ६३) जिसका परिग्रहण/स्वीकरण किया जाता है, वह परिग्रह
६८८. परिचियसुय (परिचितश्रुत) परिचितमत्यन्तमभ्यस्तीकृतं श्रुतं येन स परिचितश्रुतः ।
(व्यभा ३ टी प ६७) जिसने श्रुत को परिचित अभ्यस्त कर लिया है, वह परि
चितश्रुत है। ६८९. परिजिय (परिजित) परि-समन्तात् सर्वप्रकारैजितं परिजितम् ।
(अनुद्वामटी प १४) जो सब प्रकार से जित/स्मृत है, वह परिजित/परिचित (श्रुत) है। ६६०. परिणचारि (परिज्ञचारिन्) परिणा–ज्ञानं परिण्णा चरतीति परिण्णचारी।
(आचू पृ ३८१)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org