________________
निरुक्त कोश ६३७. णात (ज्ञात) णज्जति अणेण अत्था णातं ।
(दअचू पृ २०) जिसके द्वारा अर्थ जाना जाता है, वह ज्ञात/उदाहरण है । गायत्ति-आहरणा, दिलैंतियो वा गज्जति जेहऽत्थो ते णाता।
(नंचू पृ ६६) जिसमें ज्ञात/दृष्टांत निरूपित हैं, वह ज्ञाता/ज्ञाताधर्मकथा
सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध है। ६३८. णाम (नाम) नयति नीयते वा नाम।
(उचू पृ २०३) जिससे (परिचय) प्राप्त होता है, जाना जाता है, वह नाम ।
६३६. णाम (नाम)
नामयति-गत्यादिविविधभावानुभवनं प्रति प्रवणयति जीवमिति नाम।
(प्रसाटी प ३५६) ____ जो गति आदि विविधभावों के अनुभवन में जीव को आसक्त कर देता है, वह नाम (कर्म) है। नामयत्यधममध्यमोत्तमासु गतिषु प्राणिनं प्रह्वीकरोतीति नाम ।
(पंसंमटी प १०७) जो प्राणियों को विविध गतियों में प्रस्तुत करता है, वह
नाम (कर्म) है। ६४०. णाराय (नाराच) नरं मुंचतीति नाराचः ।
(उचू पृ १८३) जो नर को शरीर से मुक्त कर देता है, वह नाराच बाण
१. नारं नरसमूहमञ्चतीति नाराचः । (अचि पृ १७२)
जो मनुष्यों तक पहुंचता है, वह नाराच/बाण है। नरान् आचामति नाराचः। (वा पृ ४०४५) जो मनुष्यों का भक्षण करता है, वह नाराच/बाण है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org