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निरुक्त कोश
१७१ जो नाभि आदि पांच स्थानों में समाता है, वह पञ्चम
(स्वर) है। ८८६. पंडित (पण्डित) पापाड्डीनः पंडितः ।'
जो पाप से डयन/पलायन करता है, वह पंडित है । ... पण्डा वा बुद्धि तयानुगतः पण्डितः। (उचू पृ २८)
जो पंडा/बुद्धि से संपन्न है, वह पंडित है । ८८७. पंत (प्रान्त) प्रगतं अन्तं प्रान्तम् ।
(उचू पृ १७५) जो अंतिम है, वह प्रान्त/बचाखुचा (भोजन) है। ८८८. पंथ (पथिन्) पद्यत इति पंथाः।
(सूचू १ पृ ५८) जिस पर गति की जाती है, वह पथ है। ८८६. पंथपेहि (पथप्रेक्षिन्) पंथं पेहति पंथपेही।
(आचू पृ ३१०) जो पथ को देखता है, वह पथप्रेक्षी है । ८६०. पंसु (पांशु) पश्यति पाश्यति वा पांशुः।
(उचू पृ २०४) जो मलिन करती है, वह पांशु/धूल है । ८६१. पकप्प (प्रकल्प)
प्रकृष्टकल्पाभिधायकत्वात् प्रकल्पः । (स्थाटी प ११३) १. 'पंडित' का अन्य निरुक्तपण्ड्यते तत्त्वज्ञानं प्राप्यतेऽस्मात् इति पण्डितः। (शब्द ३ प २०)
तत्त्वज्ञान जिससे प्राप्त किया जाता है, वह पण्डित है । २. पथन्ति अस्मिन् पन्थाः । (अचि पृ २१६) (पथे गतौ) ३. पंशयति नाशयति आत्मानमिति पांशुः । (शब्द ३ पृ ८८).
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