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'निरक्त कोश
८७६. घेवत (धैवत) अभिसन्धयते-अनुसंधयति शेषस्वरानिति धैवतः ।।
(अनुद्वामटी प ११७) जो शेष सभी स्वरों का अनुसंधान करता है, वह धैवत/षष्ठ स्वर है। ८७७. पइ (पति) पाति-रक्षति तामिति पतिः ।
(उशाटी प ३८) जो पत्नी की रक्षा करता है, वह पति है। ८७८. पइट्ठा (प्रतिष्ठा) अपायावधारितमेवार्थ हदि प्रतिष्ठापयतः प्रतिष्ठा भण्यते ।
(नंटी पृ ५१) अपाय द्वारा गृहीत अर्थ को विकल्पपूर्वक प्रतिष्ठित करना प्रतिष्ठा/धारणा है। ८७६. पइट्ठा (प्रतिष्ठा) प्रतीत्य-- आश्रित्य तिष्ठन्त्यत्र दुःखाभिहताः प्राणिन इति प्रतिष्ठा।
(उशाटी प ५०८) जहां दुःखी प्राणी आश्वस्त होकर रहते हैं, वह प्रतिष्ठा/ प्रतिष्ठान है। ८८०. पईव (प्रदीप) प्रदीप्यते इति प्रदीपः।
(पिटी प ५) जिसे प्रदीप्त/प्रज्वलित किया जाता है, वह प्रदीप/ दीपकलिका है। ८८१. पएस (प्रदेश) प्रदिश्यते इति प्रदेशः ।।
(सूचू २ पृ ४५१) जो पूछा जाता है, वह प्रदेश/प्रश्न है । १. गत्वा नाभेरधोभागं वस्ति प्राप्योर्ध्वगः पुनः।
धावन्निव च यो याति कण्ठदेशं स धैवतः॥ (शब्द २पृ ८०७) २. प्रवचनस्य प्रश्न इत्यर्थः । (सूचू २ पृ ४५१)
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