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निरुक्त कोश
जो तत्काल / वर्तमान में उत्पन्न होता है, वह प्रत्युत्पन्न है ।
प्रति प्रति वोत्पन्नं प्रत्युत्पन्नम् ।
( आवहाटी १ पृ १८९ )
जो व्यक्ति व्यक्ति में भिन्न रूप से उत्पन्न होता है, वह प्रत्युत्पन्न है ।
६०३. पच्छण्णपडिसेवि (प्रच्छन्नप्रतिसेविन् )
प्रच्छन्नं प्रतिसेवत इति प्रच्छन्नप्रतिसेवी ।
( स्थाटी प २११ )
जो छिप छिप कर दोषों की प्रतिसेवना करता है, वह प्रच्छन्नप्रतिसेवी है |
०४. पच्छाणुपुव्वि (पश्चानुपूर्विन् )
पाश्चात्यः
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- चरमस्तस्मादारभ्य व्यत्ययेनैवानुपूर्वी - परिपाटिः विरच्यते यस्यां स पश्चानुपूर्वी ।
( अनुद्वामटी प ६७ )
जो पाश्चात्य / अंतिम बिंदु से प्रारंभ होकर उल्टेरूप में क्रम निर्धारित करता है, वह पश्चानुपूर्वी है ।
०५. पच्छित ( प्रायश्चित्त)
पायेण वा वि चित्तं सोहयई तेण पच्छित्तं । ( जीतभा ५ ) प्रायः बाहुल्येन चित्तं - जीवं शोधयति मूलोत्तरगुणविषयातीचारजनितकर्ममलमलिनं निर्मलं करोतीति प्रायश्चित्तम् ।
( प्रसाठी प ६७ )
जो प्रायः चित्त का शोधन कर देता है, वह प्रायश्चित्त है । . १०६. पजणण ( प्रजनन )
प्रजन्यते अनेनेति प्रजननं ।
०७. पजा (प्रजा)
( सूचू १ पृ १०२ ) जिसके द्वारा पैदा किया जाता है वह प्रजनन / शिश्न है ।
प्रकर्षेण जायते पाकनिष्पत्तिरस्यामिति प्रजा ।
है ।
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(व्यभा ६ टी प ४)
जिसमें प्रकृष्ट रूप से अन्न आदि पकता है, वह प्रजा / चुल्ही
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