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निरुक्त कोश
०८. पज्जय ( पर्याय )
-६०६. पज्जव (पर्यव )
परि - समन्ताद् आयः पर्यायः । ( नंटि पृ ११२ ) जिसमें चारों ओर से आय / प्राप्ति होती है, वह पर्याय है ।
परि-समन्तादवन्ति - अपगच्छन्ति न तु द्रव्यवत् सर्वदैवावतिष्ठन्त इति पर्यवाः ।
जो द्रव्य की तरह सदैव एक रूप में न रहकर बदलते रहते हैं, वे पर्यव हैं ।
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परि --- समन्ताद् अवनानि गमनानि द्रव्यस्यावस्थान्तरप्राप्तिरूपाणि पर्यवाः ।
जिनसे द्रव्य अवस्थान्तर को प्राप्त होते हैं, वे पर्यव हैं । परि-सामस्त्येन एति - अभिगच्छति व्याप्नोति वस्तुतामिति पर्यायाः । ( अनुद्वामटी प १०१ ) जो संपूर्णरूप से वस्तु में व्याप्त हो जाते हैं, वे पर्याय हैं । १०. पज्जुसणा (पर्युषणा )
सव्वासु दिसासु ण परिब्भमंतीति पज्जुसणा । (दश्रुचू प ५२ ) किसी भी दिशा में परिभ्रमण नहीं करना पर्युषणा है । परि सर्वथा वसनं एकत्र निवासो निरुक्तविधिना पर्युषणा ।' ( प्रसाटी प १८७ )
परि / सर्वथा एक स्थान पर रहना पर्युषणा है ।
११. पज्जोसवणा (पर्युपशमना)
परीति - सर्वतः क्रोधादिभावेभ्यः उपशम्यते यस्यां सा पर्युप( स्थाटी प ४८९ )
शमना ।
जिस (पर्व) में क्रोध आदि कषायों से सर्वथा उपशांत रहा जाता है, वह पर्युपशमना / पर्युषण है ।
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१. परि सर्वथा एक क्ष ेत्रे जघन्यतः सप्तविनानि उत्कृष्टतः षण्मासान्
वसनं पर्युषणा । ( स्थाटी प ४६६ )
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