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निरुक्त कोश
८७. पच्चक्ख (प्रत्यक्ष )
जीवो अक्खो तं पति जं बट्टइ तं तु होति पच्चक्खं । "
मन और इन्द्रिय से निरपेक्ष केवल ज्ञान होता है, वह प्रत्यक्ष ( प्रमाण ) है ।
८८. पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान )
प्रमादप्रतिकूल्येन मर्यादया ख्यानं --कथनं प्रत्याख्यानम्
८६. पच्चय ( प्रत्यय )
प्रतीयतेऽनेनार्थ इति प्रत्ययः ।
अप्रमत्तभाव को जगाने के लिए जो मर्यादापूर्वक संकल्प किया जाता है, वह प्रत्याख्यान है ।
६०० पच्चवाय ( प्रत्यपाय )
है ।
०१. पच्चावट्टण (प्रत्यावर्तन )
( जीतभा ११ )
अक्ष / आत्मा द्वारा जो
( उचू पृ २४ ) जिससे अर्थ / तत्त्व की प्रतीति होती है, वह प्रत्यय है ।
१७३
प्रत्यपाययति - प्रत्यपाये पातयतीति प्रत्यपायः । ( बृटी पृ १७१ ) जो प्रत्यपाय / विघ्न में डालता है, वह प्रत्यपाय / विराधना
प्रतिपत्ति / ज्ञानपूर्वक मतिज्ञान का एक भेद है ।
०२. पच्चु पन्त ( प्रत्युत्पन्न )
( स्थाटी प ४१ )
प्रतिपत्त्याऽऽवर्तनं प्रत्यावर्त्तनम् । ( नंटी पृ ५१ ) आवर्तन करना प्रत्यावर्तन / अवाय /
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२. विधिनिषेधविषया प्रतिज्ञेत्यर्थ: । ( स्थाटी प ४१ )
साम्प्रतमुत्पन्नं प्रत्युत्पन्नम् ।
१. अश्नाति - भुङ्क्ते अश्नुते वा - व्याप्नोति ज्ञानेनार्थानित्यक्ष:आत्मा तं प्रति यद् वर्त्तते इन्द्रियमनोनिरपेक्षत्वेन तत्प्रत्यक्षम् ।
( स्थाटी प ४६ )
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