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निरुक्त कोश
जो संपूर्णरूप से कल्प / आचार का प्रतिपादन करता है, वह प्रकल्प / निशीथसूत्र है ।
८२. किरण ( प्रकिरण )
प्रदातुं कीर्यते विक्षिप्यते इति प्रकिरणम् ।'
फलदान के लिए जिसे बिखेरा जाता है,
है ।
८३. पकुव्वय ( प्रकारिन् )
यः शुद्धि प्रकर्षेण कारयति स प्रकारीति । जो प्रकृष्ट रूप से शुद्धि करता है,
दाता है ।
८४. पकुव्वि ( प्रकुविन्)
प्रकुर्वतीत्येवंशीलः प्रकुर्वी ।'
( व्यभा ३ टीप १८ )
जो उचित प्रायश्चित्त के द्वारा दोषसेवी की विशुद्धि करता
है, वह प्रकुर्वी / आचार्य है ।
८५. पक्खि (पक्षिन् )
पक्खा तेसि संतोति पक्खिणो ।
जिनके पक्ष / पंख हैं, वे पक्षी हैं ।
८६. पग्गह (प्रग्रह)
(व्यभा १ टीप ५)
वह प्रकिरण / वपन
( स्थाटी प ४०६ ) वह प्रकारी / प्रायश्चित्त
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प्रगृह्यते - उपादीयते आदेयवचनत्वाद्यः स प्रग्रहः । ( स्थाटी प ३ ) आदेयवचन के कारण जिसका प्रग्रहण / स्वीकरण किया जाता है, वह प्रग्रह / सर्वमान्य नायक है ।
( आचू पृ ३१४ )
१. प्र शब्दोऽत्र दाने । ( व्यभा १ टीप ५)
२. कुर्व इत्यागम प्रसिद्धो धातुरस्ति यस्य विकुर्वणेति प्रयोगः । आलोचकेनालोचितेष्वपराधेषु यः सम्यक् प्रायश्चित्तप्रदानत आलोचकस्य विशुद्धिमुपजनयति स प्रकुर्वी । ( व्यभा ३ प १८ )
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